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The Journey Begins

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Good company in a journey makes the way seem shorter. — Izaak Walton

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मेरी मां की मां
नानी हमको
सबसे प्यारी
है वो ,
ज्ञान की फुलवारी,
ज्ञान केेेेेे हर एक फूल से, हमने बाजी मारी
कांटो
को
बिना मसले,
कैसे
बचे,
इसका भी बोध ,कराती बारी-बारी
नमन करती हूं ,मैं आपको नानी हमारी,,,🙏🙏

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🙏महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई अनंत शुभकामनाएं🙏 सारे मिल बोले…..🔱ॐ नमः शिवाय ….ॐ नमः शिवाय 🔱

अर्द्धनारीश्वर,
अद्भुत स्वरूप,
भोलेनाथ का
देता हैं संदेश।

समाज,परिवार,
और जीवन में,
नर और नारी,
दोनों ही विशेष।

एक दूजें बिन,
इनका महत्व,
आपस में होता,
शून्य और शेष।

शिव–शक्ति के,
इस अवतार का,
लगाले अंतस में,
हैशटैग अवशेष।

©®मनीषा मारू
नेपाल

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#अफवाह

अफवाहों की नगरी कड़क चाय सी हैं होती।
पहले तो अदरक सी बातों को कूट कूट कर
खूब उबाला जाता।

फिर  इधर उधर सबके कानों तक पहुंचा,
उसपर चायपत्ती सा रंग हैं चढ़ाया जाता।

कभी झूठी बातों का गर्म मसाला
हद से ज्यादा डाल,
खूब गर्म गर्म हैं परोसा जाता।

तो कभी ज्यादा चीनी सा मीठा बना,
अंतरमन घायल हो जाए
ऐसा रोग भी हैं लगाया जाता।

कोई अफवाह हैं फैलता,
तो कोई अपने को बेगुनाह साबित करने में,
ताउम्र खुद को दाऊ पर लगा, 
दुनिया से रुखसत भी हैं हो जाता।

लोगों को उबाल लेने का
तबतक बड़ा मजा है आता,
जबतक वो उफान उल्ट कर
उनके गले का दर्द ना बनजाता।

अफवाह तो अफवाह ही होती है,
चाहें अपने उड़ाए या गैरो से उड़ती जाए।

उसवक्त मजबूती से हौसला रख,
हर उड़ती अफवाहों को सोचना बंद कर ।

खुद से बस इतना ही काहा जाए,
ए_जिंदगी तुम बड़ी खूबसूरत हो….

बस जी भर के लिए तुझे जी लिया जाए..
बस जी भर के लिए तुझे जी लिया जाए।

©®मनीषा मारू
           नेपाल

#जीवन#खेल

वो बचपन प्यारा, हर खेल था जिसमें निराला।
खेल खेल में मस्त रहते, घर हो या पाठशाला।

हार जीत का गम नहीं,होता कोई किसीसे काम नहीं।
तरह तरह के खेल खेलते,एक खेल से मन भरता नहीं।

कभी पतंग ले भाइयों के पीछे दौड़ी,
तो कभी देखती,कैसे बंधाते हैं लट्टू में वो डोरी।

कभी मिलकर खेलते सभी रुमाल चोर,
और फिर भगा भगा के करते खूब शोर।

खोद के मिट्टी,लगाकर गिल्ली ,मार के डंडा,
कोन कितना दूर उछलता,दिखाते सब अपना फंडा।

छोटे भाई बहनों का खाने में वो नखरा दिखाना,
ये दादा का.. ये दादी का… ये मम्मी का…ये पापा का..
खेल खेल में सबका नाम ले फिर उनको खाना खिलाना।

बरसात के पानी में वो कागज की नाव चलाना,
कपड़ो के गुड्डे ,गुड़िया बनाकर उनका ब्याह रचना।

खुली छत पे सबका इक्ठे ही सो जाना,
नीद न आने पर,शरारत का खेल खेलना
यहां भूत हैं डराकर फिर सबको नीचे ले जाना।

कहां भूला पाएंगे वो सारे खेल,
वो बचपन का जमाना।
छुपन छुपाई का अलग ही था नजराना,

सांप सीढ़ी के खेल में
सांप के कटते ही नीचे आजाना,
और फिर से सीढ़ी चढ़ ऊपर बढ़ जाना।

इस बात का जहन में एकदम से बैठ जाना
खेल कोई भी हो जीवन का,
हमे तो बस उसको खेलते जाना।

अब जिंदगी को हैं ये बतलाना,
बचपन में इतने खेल खेले हैं… ऐ_ जिंदगी,
अब तेरे हर खेल में, हमें तो हैं बस मुस्कुराना…
अब तेरे हर खेल में, हमें तो हैं बस मुस्कुराना।

©®मनीषा मारू
नेपाल